समर्पण...
न है कोई बात करने की...तो न करो ना, देखो उदासी भी कोई कहने की चीज है क्या भला? अरे दो लोगों के समझ बीच में बैठ जाती है न, फिर कुछ नहीं होता शब्दों से.. आँखें, मुस्कान और सांस लेने की गति ही काफी है। अरे जरूरी थोड़ी है बातें ही हो...हो सकता है ख्याल आए दूसरे का, और पूछ लिया जाए खाना खाया? बस...इतना काफी है।शाम जब आए तो लगे वो बचपन वाला एक रुपया है हथेली पर, जिसे मुट्ठी में कसकर बंद कर लें वैसे ही... थकान देखते रहें कैसे उतर रही है दिन की...जीवन अगर दे रहा हो कड़वाहट, अगर ना मिल रहा हो कहीं भी आराम.. ना दिन, ना त्यौहार, ना मेले..अगर कुछ भी ना भा रहा हो..तो कंधा काफी है न , सर टीकाकार खुद को आराम देने को। जब लगे ईश्वर के घर में भी ना रुक रही हो बेचैनी..या फिर पढ़ने, कला करने से भी ना मिल रही हो शांति...तो तस्वीर काफी है..देखना मुस्कुराना.. कीमत कुछ नहीं है, समर्पण ही कीमती है...