उधेड़बुन
संग कौन ही जाता होगा जाता होगा तो वहां के नियम उन्हें संग रहने देते होंगे? क्या कठोरता सिर्फ पृथ्वी तक सीमित है? क्या ईश्वर और उसकी दुनिया कोमल है? पवित्र? पवित्र कैसे बनते हैं? पवित्रता के क्या मानक हैं? न जाने कौन से अल्हड़ सवाल और बातें मैं सोचती रहती हूं... कहने को तो पृथ्वी ईश्वर का एक संपूर्ण साम्राज्य है, जहां व्यक्तिवाद को सीमाओं से बांधा तो गया है , लेकिन ये मानकर कि पृथ्वी की भलाई इसी में होगी। उस सत्य की भलाई इसी में होगी जो कथित है। लेकिन जे • एस मिल कहते हैं व्यक्ति जब अपनी उपयोगिताएं समझ लेता है , जब वह अपनी क्षमताओं को पहचान लेता है , उसे स्वायत्तता देनी चाहिए। नियम अगर व्यक्तिवाद का ह्रास करने लगे तो नियमों को बदलने के लिए लड़ना भी चाहिए। साम्राज्यवाद, सामंतवाद, उदारवाद... इसी तरह इंसानी उपयोगिताओं का विकास हुआ है। पवित्रता के मानक परिष्कृत होते रहे हैं, और आगे भी होंगे। हो सकता है हम और मानवता खोए, हो ये भी सकता है कुछ ही लोग बचें, जो जीवित रखें शेष मानवता को। लेकिन मानवता के मायने वैसे ही रहेंगे सदैव? क्या कोमलता , मानवता का पर्यायवाची बना रहेगा... पृ...