" दिखावा "
रिश्तेदार,समाज, अपनों के बीच सही बात करना और असल सही बात में बहुत ज्यादा फर्क होता है। ये किसी को खुश करना और खुद के प्रति वफादार बने रहने के बीच का फर्क है। पूरी जिंदगी इंसान इसी भागदौड़ में लगा रहता है कि कैसे भी गलत करके भी या चुप रहकर भी वो सही बना रहे उनके लिए जो महज नाम भर के लिए उसके अपने होने का दावा करते हैं। लेकिन कभी तो लगता होगा कि साला गलती की दूसरों को खुश करते करते , इतने efforts कभी खुद के लिए लगा लिए होते तो हम खुश होते। इस समय जिस iitan baba की जय जयकार पूरा भारत लगा रहा है वो पूरी तरह समाज , रिश्तेदारों से दूर निकला हुआ व्यक्ति है। "हमारा धर्म है हम बने रहना" यानि मनुष्य का धर्म मनुष्य बने रहना, जानवर का धर्म जानवर बने रहना... ये लाइन महज एक लाइन नहीं है। जब मैं उन्हें सुनी (हालांकि मैं ज्यादा नहीं सुनी) तो यही लाइन मुझे सबसे आकर्षित की( उनकी ओर नहीं उनके व्यक्तित्व की ओर) .... आज मनुष्य मनुष्य कम खिलौना बना हुआ है। जिसका धर्म हर सामने वाले व्यक्ति को खुश करना है। हां हर कोई नहीं भाग सकता इन झूठ से , या इन अंधे रिश्तों से... हर कोई बाबा नहीं बन सकता, लेकि...