.... सब छोड़ आना
1.तुम आओ मेरे पास, सभी बाहरी लड़ाइयां लड़कर.. समाज से, रिश्तेदारों से, मन के फीके पड़े अपनों से। तुम मेरे पास आओ और छिप जाओ मेरे आंचल में, मैं समेटना चाहती हूं तुम्हारे रिसते हर दर्द को, और तुम्हे दिखाना चाहती हूं कि तुम सबसे सुरक्षित बाहों में हो।
2.मुझे देखने दो, तुम्हें रोता हुआ देखकर मुझे याद आता है नरम दिल का वो लड़का जो मां के जाने के बाद सब सहता है ये सोचकर कि कोई संभालने वाला नहीं । यकीन मानो मैं किसी से नहीं कहूंगी, तुम आओ मेरे पास...
3.तुम इंतजार करना छोड़ दोगे क्या? कि इस दुनिया की ज़हालत भरी मजबूरियां जब छूटेगी तब तुम मेरे पास आओगे?
सुनो रहने दो, मत करो इंतजार, लगा लेने दो जोर इन मजबूरियों को , देखना एक देर रात के बाद तुम मुस्कुराओगे और भोर के सूरज में तुम चमकीली आंखों के साथ मेरा हाथ थामोगे और साथ चल दोगे...
4.तुम क्या ढूंढ रहे हो इतनी देर? कहीं तुम मेरे लिए तोहफे इकट्ठे तो नहीं कर रहे? सुनो... दूसरे के लिए तोहफे इकट्ठे करना, और मैं दूसरी नहीं हूं, मैं एक तुमसे जुड़ा दशमलव हूं....
5. तुम महीनों नहीं आते, और मैं इंतजार भी नहीं करती। क्यूंकि घर को इंतजार नहीं रहता, यात्री को घर पहुंचने की बेसब्री रहती है।
6.कभी मैं पूछ बैठी तुमसे कि, क्यों? क्यों सिर्फ मैं ही याद रही...?तुम्हारे पास जवाब नहीं होगा... मैं जानती हूं।
7. चलो किसी और भाषा में बात करते हैं, तुम्हारी भाषा मौन होगी, और मेरी नजरे उनका जवाब देंगी। तुम अपनी भाषा को मेरे हाथ थाम कर सजाना उस पर अलंकार का प्रयोग करना मेरा माथा चूम कर, मैं आंख बंद करके उस भाषा को लिपिबद्ध कर दूंगी...
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें