थोड़ी अपनी, थोड़ी स्वप्न की
आजकल बहुत जल्दबाजी में सोच रही हूं और लिख भी रही हूं। दिमाग में एक साथ तमाम विचार पनप रहे हैं और निकल भी रहे हैं।मेरे भीतर उन विचारों को पकड़ रखने की जल्दबाजी मची हुई है। चाहती हूं वो सब लिख दूं जो भी परेशान कर रहा है या मुझे रोक रहा है। आज जब अचानक बारिश में भीगने का मन बना मैं झट से दुकान बंद करके छत पर पहुंच गई, देर तक एहसास न हुआ कि आंखो से आंसू भी बह रहे हैं.. एक दम जब कांपी तो लगा धीमे धीमे कुछ है जो बह रहा है बारिश के साथ में।
मुझे तब कई विचार आए। मां का जाना सबसे ज्यादा याद आया, मैं उन्हें वहीं छत पर बैठा हुआ याद कर रही थी जब हम दोनों सुबह सुबह एक्सरसाइज करने आखिर दफा वहां बैठे थे। मैने उस दिन की तरह लंबी सांस ली, और ऊपर मुंह करके आंख बंद की जिससे बूंदों ने किसी छोटे बच्चे की तरह मुझसे अटखेलियां खेली हों। एक दम मुझे मेरा एक दोस्त याद आ गया, जिससे मैं पिछले कुछ दिनों से बात कर रही थी, कि एक दम मैं उसे सब कुछ बताने लगी थी। ये पहली दफा था जब मैं किसी अंजान से इतना जुड़ पाई थी, वरना मैं अपने मन की बातें जहर बनने के लिए छोड़ देती हूं, जिससे वो जहर कविता में निकल जाता है। बहुत से खयाल आ जा रहे थे। एक दम से नीचे से किसी तेज हॉर्न की आवाज आई और मैं वास्तविकता में आ गई। हमें ज्यादा देर नहीं लगती विचारों की दुनिया से वास्तविक दुनिया में आने के लिए एक हॉर्न काफी है उसके लिए..
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