असाधारण बनना एक क्रिया है
अचानक अब सभी को असाधारण बनने की आवश्यकता महसूस हो रही है। कोई भी सामान्य नहीं बना रहना चाहता, सब चाहते हैं उनमें एक विविधता दिखे कि लोग हजारों की भीड़ में अलग पहचाने जाएं। सब अपने आकार पाने के लिए खुद के व्यक्तित्व में कांट छांट कर रहे हैं। कितनी अजीब घटना है ये, हम सब जानते हैं कि शुरुआत सभी की स्नेह से हुई और अंत सभी का दुख से होगा। इस बीच में हमारी लड़ाइयां हमारे विपरीत भी लड़ी जाती हैं।
मैं ये नहीं मानती कि मैं इन से अलग हूं, मुझ में भी शायद असाधारण बनने की लालसा है, और ये इतनी तीव्र होती है कभी कि मैं कई काम ऐसे कर देती हूं जो मेरे व्यक्तित्व से बिल्कुल उलट हैं। जैसे मैं नहीं चाहती मै किसी से भद्दा मजाक करूं, लेकिन ये हो जाता है । और आज जब ये लिख रही हूं तो लग रहा है कितना मुश्किल है साधारण बन जाना। मैं हर वक्त प्रेम नहीं लिख सकती, मुझे प्रेम पर लिखना अब थका भी देता है कभी कभी, मैं आजकल अधूरापन लिख रही हूं। और मैं देख रही हूं कि मेरी संपूर्णता मौन में है। लेकिन मैं बाहरी दुनिया के शोर में अपनी आवाज भी जोड़े जा रही हूं जबरदस्ती।
ये मेरी मुझसे ही लड़ाई है जो आखिर तक बनी रहेगी । शायद हमारी सभी की साधारण होने की परिभाषाये अलग अलग हैं , और उनमें हम दूसरों से तुलना करते करते इतने असाधारण हो जाते हैं कि भूल जाते हैं हमारा असल व्यक्तित्व।
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