कविताओं की याद में

 शुरूआत कहां से हो लिखने की, इसी सवाल को सुलझाने में घंटों बीत जाते हैं कभी कभी, क्योंकि बहुत सोचकर लिखना पड़ता है। ज्यादातर मेरे ख्याल मुझ पर गुजरे हालात का रिएक्शन होते हैं तो ज्यादा जद्दोजहद नहीं करनी पड़ती लिखने में। 

पर अब सोच रही हूं धीरे धीरे कुछ किरदार और जोडूं अपनी लेखनी में, जिससे मैं इस जगह ज्यादा रहूं बाहर की दुनिया से ज्यादा। मुझे बाहर बोरियत होती है, सब अंजान से लगते है, किसी से बात करने के लिए पहले सोचना होता है। इंसानों की सबसे बड़ी समस्या मुझे यही लगी है कि वो सामने वाले को समझने ज्यादा मेहनत नहीं करते। सिर्फ अपने हिसाब से बनाए जजमेंटल कॉफिन में उसका व्यक्तित्व फिट करना चाहती हैं। मै इसी कारण ज्यादा देर तक नहीं झेल पाती लोगो को, या फिर ज्यादा दिनों तक। क्योंकि मुझे उनके बनाए जजमेंटल कॉफिन में दिक्कत होने लगती है और मैं उन्हें इगनोर करना या वैसा ही छोड़ आती हूं।

सोचते हूं आखिर कब तक मैं लोगों से भागती फिरूंगी, ये मेरा पीछा कहां तक करेंगे? क्या संसार में ऐसा कोई होगा जो थक जाएगा तब भी चलेगा मुझसे मिलने के इंतेजार को ढोते हुए?  शायद नहीं, नहीं इतनी अच्छी भी नहीं ये दुनिया..

इसीलिए अब मैने कविता लिखना बंद कर दिया है, क्योंकि मैं प्रेम के इंतेजार में बूढ़ी नहीं होना चाहती। लेकिन मैं कविताएं पढ़ती हूं.. कि कहीं तो प्रेम पनप रहा है। 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

... अंत एक परिणाम है, जो कभी नहीं घटता

भीड़ की विरासत