लेकिन मुझे चलते रहना पसंद है।


 गुजरते समय के साथ ये सच्चाई और भी स्वीकारने में कठिनाई होती जा रही है कि मां साथ नहीं है...। आज काफी महीनों बाद अकेले रात में इतना जागी हुई हूं, वर्ना रोज बहाने से खुद को जगाए रखती थी, किसी दोस्त से बात करने के बहाने से या फोन या किताब के बहाने से से। इन बहानों ने मुझे थोड़ी देर सहारा दिया, लेकिन ताउम्र सच से थोड़ी भागा जा सकता है..।  


हर दफा परिस्थिति से भागना हमारा बस में नहीं, हमारे बस में सिर्फ इतना है कि हम आराम से सांस लेकर सोच पाएं वर्तमान को, और पुरानी बातें याद करके उदासी ओढ़ लें..

आज शाम को सो ली तो नींद आने में जरा दिक्कत हो रही है । और फिर मैने हमेशा की तरह अपने किसी दोस्त को सदा के लिए अलविदा कह दिया । मैं शायद हमेशा के लिए जुड़ने वाले उस शो ऑफ वाले टैग से कतराती हूं, ऐसा नहीं है मुझे लोग पसंद नहीं या उनसे बात करना पसंद नहीं, लेकिन एक वक्त के बाद जब बाते खत्म हो जाती हैं, और जबरदस्ती बातों को जारी रखा जाता है इसलिए कि दो लोग सिर्फ साथ रहें, मुझे ऐसा जारी रखना पसंद नहीं आता है। इसलिए मैं छोड़ आती हूं एक अच्छे मोड़ पर उस व्यक्ति को।

कभी भी मुझे खुद की इस आदत पर खीझ नहीं आई, बल्कि कुछ गलत या सही चुनने वाला नजरिया नही आया। मुझे लगता है ये मुझमें प्राकृतिक है सो मैंने अब स्वीकार लिया है, जब आप खुद को स्वीकारने लगते हैं तो आपको दूसरों से ज्यादा खुद का साथ अच्छा लगता है। शायद इसलिए भी मैं अस्थाई रूप से जुड़ती हूं लोगों से। मेरा एक करीबी दोस्त मुझसे कहता था, मैने तुझे या तूने मुझसे कभी वादा नहीं किया, क्यूंकि उसे मालूम था हम दोनों ही उसे पूरा करने की स्थिति में नहीं होंगे..वादे सच में बहुत बड़ी चीज हैं। चीज तो नहीं कहा जा सकता इन्हें, लेकिन जिस तरह ये तोड़े जाते हैं मुझे चीज से भी बदतर लगते हैं उस वक्त। लेकिन वादे मेरे लिए हमेशा पूरी कहानी जैसे लगते हैं जिनका एक अंत होना तय है। लेकिन मुझे चलते रहना पसंद है...

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