अड़ियल

 ... जिन हालातों से फिलहाल गुजर रही हूं, लगता है उस सीमित दुनिया में ऐसे ही सीमित मन के लोग हैं। जब खुद के करीबी रिश्ते समझदार और धैर्य के साथ ना निभते हुए दिखें लगता है कि किस अजीब बदहाल जिंदगी में खुदा ने फेंक दिया है। 

मां के बाद घर की जिम्मेदारी आना , लेकिन उस जिम्मेदारी को निभाते हुए हर रोज ये सुनना कि एहसान किया जा रहा है... सामने वाला जब आपके मन और आपके हालतों को ना समझे आप अकेले हो जाते हैं। और घसीटे चले जाते हैं समय के साथ। अभी आदमी और औरत की बात लिखूं तो फिर आपलोग फेमिनिस्ट का धब्बा लगाकर मेरी बातें किनारे कर देंगे। पर क्या ये गलत नहीं है कि खुद के काम को काम औरों के काम को महत्व न देना आदमी जात की आदत बन चुकी है।  खुद की चीजें न संभालने का गुस्सा , खुद की जिम्मेदारी को न समझने का गुस्सा, यहां तक कि खाना खाने के लिए पूछने के बाद का गुस्सा...समझ नहीं आता ये एहसान हम पर कर रहे है या खुद पर..

"ना अगर हो नरमी तुम्हारे लहज़े में

तो न करो हमसे कोई भी बात तुम"

....कितना कुछ झेलना पड़ता है ये जानते हुए कि वो नहीं बदलेंगे, हमें ढलना होगा? इतने अड़ियल इंसान को अकेले ही रहना चाहिए शायद...

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