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भाषा मौन की

अंजान आवाजें बारी बारी से मेरा नाम लेती हैं मैं वर्तमान से घबराकर उन्हें अनसुना कर देती हूं मेरा सूरज सुबह भी औंधा सा चित दिखाई देता है सभी का अपना सूरज है सभी के अपने दिन और सभी को अपना चांद  क्योंकि इंसानों का नजरिया अलग है मेरी रात मेरे सिरहाने उन आवाजों को रखती है मैं दूसरी करवट किए सोने का दिखावा करती हूं .... वो आवाजें चूंकि उठ कर हाथ नहीं फेर सकतीं अब  इसलिए मैं गीला मन लेकर ,सिकुड़ कर , शिशु की भांति पड़ी रहती हूं, अपनी नींद की जरूरत में। क्योंकि आखिर में हम जरूरत के हिसाब से आकार ले लेते हैं  जैसे ...मेरी जरूरत एक कोमल स्पर्श है।

तब्दीली

बार बार डरती हूं, लेखक बनने से। चारों तरफ एकांत, दुख, सुख की इच्छा, सही समय की तलाश , सुकून की तलाश, प्रेम, विरह खाली मन...ये सब ही ऐसे चारों तरफ मुख्य विषय की तरह उभर उभर कर सामने आ रहे हैं। मनःस्थिति को कागज या स्क्रीन पर उतार कर मुझे हल्कापन तो महसूस होता है, लेकिन डर भी छिपा रहता है, कि कहीं मैं इन सब की तरह,  और गहरा सोचने लगी तोक्या होगा मेरा। मेरे आसपास तो न तो फूल हैं, न कोमल हाथ, न ही मजबूत कंधे.. लेकिन ऐसा हुआ तो इसकी जिम्मेदारी मैं नहीं ले पाऊंगी।  लेखक होना गैर जिम्मेदार होना है। लोग आपको हौंसला नहीं, आपको बिना समझे झाड़ पर चढ़ा देते हैं। ये जानते हुए कि तना कमजोर है । मुझे मालूम है अगर गिरी तो वो बिल्कुल जिम्मेदारी नहीं लेगे।  क्या हुआ है भारतीय लेखन को, अब हर जगह भूख दिखती है, प्रेम, विरह, सुकून, सुख की। लोग प्रेम को लिखकर महसूस कर रहे हैं। ये ऐसा शायद दिखावा कर रहे हैं, या तसल्ली दे रह हैं खुद को , या की ऐसा भी हो सकता है वो किसी कल्पना लोक में जीने की कोशिश में लगे हैं। सब भाग रहे हैं खुद से, शायद मैं भी उसी रेस की तैयारी में लग गई हूं....लेकिन ये होना मेर...

.... सब छोड़ आना

1.तुम आओ मेरे पास, सभी बाहरी लड़ाइयां लड़कर.. समाज से, रिश्तेदारों से, मन के फीके पड़े अपनों से। तुम मेरे पास आओ और छिप जाओ मेरे आंचल में, मैं समेटना चाहती हूं तुम्हारे रिसते हर दर्द को, और तुम्हे दिखाना चाहती हूं कि तुम सबसे सुरक्षित बाहों में हो।  2.मुझे देखने दो, तुम्हें रोता हुआ देखकर मुझे याद आता है नरम दिल का वो लड़का जो मां के जाने के बाद सब सहता है ये सोचकर कि कोई संभालने वाला नहीं । यकीन मानो मैं किसी से नहीं कहूंगी, तुम आओ मेरे पास... 3.तुम इंतजार करना छोड़ दोगे क्या? कि इस दुनिया की ज़हालत भरी मजबूरियां जब छूटेगी तब तुम मेरे पास आओगे? सुनो रहने दो, मत करो इंतजार, लगा लेने दो जोर इन मजबूरियों को , देखना एक देर रात के बाद तुम मुस्कुराओगे और भोर के सूरज में तुम चमकीली आंखों के साथ मेरा हाथ थामोगे और साथ चल दोगे... 4.तुम क्या ढूंढ रहे हो इतनी देर? कहीं तुम मेरे लिए तोहफे इकट्ठे तो नहीं कर रहे? सुनो... दूसरे के लिए तोहफे इकट्ठे करना, और मैं दूसरी नहीं हूं, मैं एक तुमसे जुड़ा दशमलव हूं....    5. तुम महीनों नहीं आते, और मैं इंतजार भी नहीं करती। क्यूंकि घर को इंतजार न...